हम देखते है कि आज संसार के अच्छे बुरे हर काम पैसे के बल पर होते है ! निन्यान्नव प्रतिशत समस्यायें पैसे के द्वारा सुलझाई जा सकती है! आज का युग तो पैसों को ईश्वर की ताकत से ज्यादा ताकतवर मानता है ! हर घर-घर में उसीकी चर्चा उसीकी पूजा होती है ! मुर्ख को विद्वान बनाना रंक को राजा बनाना पापी को पुण्यात्मा बनाने की ताकत पैसे में है अर्थात आज के युग में पैसा ही सर्व शक्तिमान है ! मै मानती हूँ पैसे में कोई बुराई नहीं होती बुराई होती है मन के लोभ में लालच में, संपत्ति स्वाभाविक हो ईश्वरीय हो तभी सुखदायक होती है नहीं तो जीवन में अनेक विप्पति आती है इसी की वजह से ! तभी तो जाग्रत व्यक्तियों ने संपत्ति का त्याग कर दिया मतलब त्यागा नहीं छूट गया कहना ज्यादा बेहतर होगा !
ऐसे ही एक अलौकिक संत हुए गुरु नानक देव जी जिन्हे सिखों का प्रथम गुरु माना जाता है ! उनके जीवन से जुडी बहुत सारी सुन्दर-सुन्दर घटनाएँ है इसी से जुड़ा एक प्रकरण है यह … नानक लाहोर के पास किसी गाँव में ठहरे थे ! एक व्यक्ति ने उनसे कहा, मै आपकी सेवा करना चाहता हूँ ! मेरे पास बहुत धन है आपके किसी उपयोग में लगा दूँ तो बड़ा अनुग्रह होगा ! नानक कई बार टालते गए लेकिन उसने फिर से दुबारा अपनी प्रार्थना नानक जी के सामने दोहराई ! नानक जी ने तब उस व्यक्ति को कपडे सीने के एक सुई देते हुए कहा, इसे रख लो और जब हम मर जाएं तो इसे वापिस लौटा देना ! सुई को मरने के बाद कैसे लौटाया जा सकता है वह व्यक्ति चौंक गया नानक जी की बात सुनकर,लेकिन लोगों के सामने कुछ भी पूछना उचित नहीं लगा एकदम अस्वीकार करना भी उचित नहीं था ! संकोच करते हुए सुई ले तो गया मगर रातभर सोचता रहा सोचता रहा सुई मृत्यु के पार कैसे जा सकेगी वह ग्लानि महसूस करने लगा कि नाहक उसने धन से सेवा करने की आकांक्षा की थी ! रातभर सो न सका सुबह पांच बजे ही भागता हुआ नानक जी के पास पहुंचा उनके पैरों पर गिर पड़ा और कहा, अभी जिन्दा हूँ यह सुई वापिस ले ले, मरने पर लौटाना मेरे बस की बात नहीं है ! मैंने बहुत चेष्टा की बहुत सोचा अपनी सारी संपत्ति भी लगा दूँ तो भी जिस मुट्ठी में यह सुई होगी वह इसी पार रहेगी उस पार ले जाने का कोई उपाय नहीं ! इस सुई को आप वापिस ले ले ! फिर मै तुमसे एक बात पूछूं ? तेरे पास क्या है जिसे तू पार ले जा सकता है ? उस व्यक्ति ने कहा, मैंने कभी इस बारे में सोचा नहीं लेकिन अब सोचता हूँ तो लगता है ऐसा कुछ भी नहीं है मेरे पास जिसे उस पार ले जा सकूँ ! फिर नानक जी ने कहा, जो मृत्यु के इस पार है वह केवल विपत्ति हो सकती है संपत्ति नहीं हो सकती ! कितनी सार्थक बात कही है सच में जब तक संपत्ति से बड़ी कोई सार्थक की अनुभूति न हो तब तक निरर्थक चीजे हाथ से छूटती नहीं !
ऐसे ही एक अलौकिक संत हुए गुरु नानक देव जी जिन्हे सिखों का प्रथम गुरु माना जाता है ! उनके जीवन से जुडी बहुत सारी सुन्दर-सुन्दर घटनाएँ है इसी से जुड़ा एक प्रकरण है यह … नानक लाहोर के पास किसी गाँव में ठहरे थे ! एक व्यक्ति ने उनसे कहा, मै आपकी सेवा करना चाहता हूँ ! मेरे पास बहुत धन है आपके किसी उपयोग में लगा दूँ तो बड़ा अनुग्रह होगा ! नानक कई बार टालते गए लेकिन उसने फिर से दुबारा अपनी प्रार्थना नानक जी के सामने दोहराई ! नानक जी ने तब उस व्यक्ति को कपडे सीने के एक सुई देते हुए कहा, इसे रख लो और जब हम मर जाएं तो इसे वापिस लौटा देना ! सुई को मरने के बाद कैसे लौटाया जा सकता है वह व्यक्ति चौंक गया नानक जी की बात सुनकर,लेकिन लोगों के सामने कुछ भी पूछना उचित नहीं लगा एकदम अस्वीकार करना भी उचित नहीं था ! संकोच करते हुए सुई ले तो गया मगर रातभर सोचता रहा सोचता रहा सुई मृत्यु के पार कैसे जा सकेगी वह ग्लानि महसूस करने लगा कि नाहक उसने धन से सेवा करने की आकांक्षा की थी ! रातभर सो न सका सुबह पांच बजे ही भागता हुआ नानक जी के पास पहुंचा उनके पैरों पर गिर पड़ा और कहा, अभी जिन्दा हूँ यह सुई वापिस ले ले, मरने पर लौटाना मेरे बस की बात नहीं है ! मैंने बहुत चेष्टा की बहुत सोचा अपनी सारी संपत्ति भी लगा दूँ तो भी जिस मुट्ठी में यह सुई होगी वह इसी पार रहेगी उस पार ले जाने का कोई उपाय नहीं ! इस सुई को आप वापिस ले ले ! फिर मै तुमसे एक बात पूछूं ? तेरे पास क्या है जिसे तू पार ले जा सकता है ? उस व्यक्ति ने कहा, मैंने कभी इस बारे में सोचा नहीं लेकिन अब सोचता हूँ तो लगता है ऐसा कुछ भी नहीं है मेरे पास जिसे उस पार ले जा सकूँ ! फिर नानक जी ने कहा, जो मृत्यु के इस पार है वह केवल विपत्ति हो सकती है संपत्ति नहीं हो सकती ! कितनी सार्थक बात कही है सच में जब तक संपत्ति से बड़ी कोई सार्थक की अनुभूति न हो तब तक निरर्थक चीजे हाथ से छूटती नहीं !
नानक देव जी की कहानी के मूल में छुपे दर्शन को उकेरा है आपने ...
जवाब देंहटाएंपर आज का समय ऐसा है की धन के बिना कुछ भी संभव नहीं है ... जीवन रहते हुए ही संपत्ति है ये ...
गंगा-स्नान/नानक-जयन्ती(कार्त्तिक-पूर्णिमा) की सभी मित्रों को वधाई एवं तन-मन-रूह की शुद्धि हेतु मंगल कामना ! अच्छी प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंसही सन्देश है गुरु का , तमाम धनी दोस्तों को जानता हूँ जो यही व्यवहार करते हैं और मौत को भूले रहते हैं !
जवाब देंहटाएंआभार !!
अर्थपूर्ण जीवन दर्शन की बात
जवाब देंहटाएंसच बात है आदरनीया ..आजकल के इस आपाधापी भरे संसार में मानवीय मूल्यों की जगह धन सम्पदा ने ले ली है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी पास्तुति !
जवाब देंहटाएंसुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति.... आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत दिन हुए लेखनी को आराम देते देते सुमन जी।
जवाब देंहटाएंआजकल मेरी तरह मेरी लेखनी को भी आराम करने की
हटाएंआदत जो पड़ गयी है ताई क्या करूँ :) ??