शुक्रवार, 9 मई 2014

माँ ..

            
  बिटिया ने बनाया हुआ स्केच !

सीता इतिहास मे 
हुयी भी थी या नहीं 
मुझे पता नही लेकिन,
उसके होने के जीवित 
प्रमाण मौजूद है 
आज भी माँ के 
अस्तित्व में !
न खुल कर कुछ 
कह पायी थी कभी 
न खुल कर हंस 
पायी थी कभी  
पति के रामराज मे, 
कर्तव्यों की बलिवेदी पर 
अपनी भावनाओं की 
बलि चढ़ाती  माँ !
पिता के जाने के 
बरसो बाद भी 
न खुल कर कभी 
रो पाती है अपने 
बेटों के राज मे 
माँ … !!
                                      

14 टिप्‍पणियां:

  1. सीता को प्रतीक बनाकर माँ के केन्द्रीय विषय पर बहुत अच्छी कविता लिखी है आपने. सन्योग की ही बात है कि आज ही मैंने आपकी एक पुरानी कविता ब्लॉग बुलेटिन के लिये चुनी है...! माँ को केन्द्र में रखकर कई लोगों ने उनकी दुर्दशा की बात कही है. मैंने भी देखी हैं ऐसी माँएँ.. लेकिन फिर भी बहुत से लोग हैं जो माता का सम्मान करते हैं.
    एक बात फिर आज खटक रही है.

    न खुल कर हंस
    पायी थी कभी
    पिता के रामराज मे

    पिता के या पति के???

    जवाब देंहटाएं
  2. एक बहुत बड़ी भूल हो गयी जिसकी कोई क्षमा नहीं... इसलिये दुबारा कमेण्ट करना पड़ रहा है... बंगाल में बेटियों को माँ कहकर बुलाते हैं.. इसलिये माँ के द्वारा बनाया हुआ माँ का स्केच जीवत है. मेरी ओर से बहुत बहुत आशीष और शुभकामनाएँ!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार सलिल भाई इस टिप्पणीं के लिये, हमारे यहाँ भी बेटियों को माँ कहकर ही बुलाया जाता है !

      हटाएं
  3. एक बेटी अपनी माँ की भावनाओं के बारे मे बता रही है जो उसने अपने पिता के घर महसूसा है इस नाते पिता के रामराज मे लिखा है उचित क्या होना चाहिये कृपया आप ही बतायेँ !

    जवाब देंहटाएं
  4. सुमन जी, माँ के लिये एक सुन्दर कविता है । सीता के होने की प्रामाणिकता पर सन्देह करते हुए भी आपने माँ की उन्ही से तुलना की है । लेकिन सच यह है कि न सीता कमजोर थीं न ही माँ । माँ अपने वात्सल्यवश ही झुकती है चाहे सामने पति हो या पुत्र ।

    जवाब देंहटाएं
  5. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ ..... सच में सबके जीवन की धुरी बनने वाली माँ स्वयं अपने मन की न कभी कह पाती है , न कभी जी पाती है ....

    जवाब देंहटाएं
  6. सोंचने को मज़बूर करती है यह रचना , सलिल भाई के प्रश्न विचारणीय हैं ! माँ का त्याग हर एक से अधिक होता है ! उनसे बड़ा कोई नहीं . . .

    जवाब देंहटाएं
  7. मर्म स्पर्शीय रचना ... माँ के त्याग को भूलने वाला दुनिया मे कोई इंसान होगा ऐसा सोच से भी परे है ...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही मार्मिक रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  9. नारी को बेटी, पत्नी और फिर माँ बन कर तपस्या करनी होती है.। बहुत सुंदर । आपके ब्लॉग पर देरी से आई आशा है आप नाराज़ न होंगी।

    जवाब देंहटाएं
  10. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ माँ के लिये एक सुन्दर कविता है !

    जवाब देंहटाएं