आये दिन अख़बार की सुर्ख़ियों में आजकल जिस प्रकार की भ्रष्टाचार की खबरे छप रही है, उसे देखकर लगता है कि देश में भ्रष्टाचार की आँधी सी आयी हुई है! जिस भारत को लोग कभी पुण्यभूमि कहते नहीं थकते थे आज उसी पुण्यभूमि पर प्राय: हर मनुष्य का स्वार्थ साधन ही एक प्रमुख लक्ष्य बन गया है! बड़े-बड़े उद्योगपति, व्यापारी, न्यायाधीश, आफिसर्स, अध्यात्मिक धर्म के ठेकेदार, शिक्षण संस्थाये शायद एक संस्था एक मनुष्य ढूँढना मुश्किल है जो भ्रष्टाचार में लिप्त न हो! देश के रक्षक ही जब भक्षक बन गए हो तो जनता का हित देश का उद्धार कैसे संभव है? वोट की खातिर बड़े-बड़े वायदे नीतिपरक बाते करनेवाले सत्ता हाथ में आते ही उच्च कोटि के भ्रष्टाचारी साबित होते है! अक्सर हम लोगों को कहते हुये सुनते है क़ि, सत्ता और शक्ति अच्छे-अच्छों को भ्रष्ट बना देती है ! मुझे तो बिलकुल असंगत तर्क लगता है यह ! शक्ति और सत्ता तो केवल बहाना है ! मनुष्य के व्यक्तित्व में ही कही गहरे में छुपी होगी भ्रष्ट मानसिकता तभी तो, सत्ता उस भ्रष्टाचार को और भी उजागर कर देती है ! सत्ता क़ी आड़ में छुपा लोभ और लालच का परिणाम आज भ्रष्टाचार के रूप में सारे मुल्क को भोगना पड रहा है !
ओशो साहित्य में बहुत सुंदर बोध कहानी है यह! जो क़ी मुझे पढने को मिली ! महान सिकंदर जब भारत आया था तो उसने एक फकीर के हाथ में एक चमकती हुई चीज देखकर पूछा क़ि,यह क्या है ? वह फकीर बोला मै बता नहीं सकुंगा! यह राज बताने का नहीं है! लेकिन सिकंदर जिद पर अड़ गया ! कहा मैंने जीवन में कभी हार नहीं मानी है ! आपको बताना ही पड़ेगा! तब फकीर ने कहा, एक बात बता सकता हूँ क़ि, तुम्हारी सारी धन-दौलत इस छोटी सी चीज के सामने कम वजन क़ी है ! सिकंदर ने ततक्षण एक बहुत बड़ा तराज़ू मंगवाया और लुट का जो माल था हीरे-जवाहरात,सोना-चांदी सब उस तराज़ू के एक पलड़े पर रख दिया ! और उस फकीर ने उस चमकदार छोटी सी चीज को दुसरे पलड़े पर रख दिया ! उसके रखते ही फकीर का पलड़ा नीचे बैठ गया और सिकंदर का पलड़ा ऊपर उठ गया ! ऐसे क़ी जैसे वह ख़ाली हो, सिकंदर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया ! फकीर के चरणोंमे झूक गया ! और कहा कुछ भी हो, मुझे इसका राज बतलाओ ! फकीर ने कहा राज़ कहना मुश्किल है कहा नहीं जा सकता, इसलिए नहीं कह रहा हूँ! लेकिन तुम झुके हो, इसलिए एक बात और बताये देता हूँ! एक चुटकी धूल उठाई रास्ते से और उस चमकदार चीज पर डाल दी ! और न मालूम क्या हुआ क़ी फकीर का पलड़ा हलका हो गया और ऊपर क़ी तरफ उठने लगा और सिकंदर का पलड़ा भारी हो गया और नीचे बैठ गया! सिकंदर और भी चकित हो गया ! उसने कहा यह मामला क्या है ! पहेलियों को और मत उलझाओ! सीधी-सीधी बात है कहना हो कहो न कहना हो मत कहो ! उस फकीर ने कहा जिज्ञासा से पूछ रहे हो इसलिए बताये देता हूँ! यह कोई खास चीज नहीं है, मनुष्य क़ी आँख है ! इसपर धूल पड जाए तो दो कौड़ी क़ी,धूल हट जाए तो इससे बहुमूल्य और कुछ भी नहीं है ! सारी पृथ्वी का राज्य सारी धन-दौलत फीकी है !
इस बोध कहानी से यही लगता है आँख पर जो लोभ और लालच क़ी धूल पड़ी है उसे हटाने के लिये नेताओं का नैतिक होना बहुत जरुरी है ! तभी देश क़ी जनता का कल्याण होगा और देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी !
ओशो साहित्य में बहुत सुंदर बोध कहानी है यह! जो क़ी मुझे पढने को मिली ! महान सिकंदर जब भारत आया था तो उसने एक फकीर के हाथ में एक चमकती हुई चीज देखकर पूछा क़ि,यह क्या है ? वह फकीर बोला मै बता नहीं सकुंगा! यह राज बताने का नहीं है! लेकिन सिकंदर जिद पर अड़ गया ! कहा मैंने जीवन में कभी हार नहीं मानी है ! आपको बताना ही पड़ेगा! तब फकीर ने कहा, एक बात बता सकता हूँ क़ि, तुम्हारी सारी धन-दौलत इस छोटी सी चीज के सामने कम वजन क़ी है ! सिकंदर ने ततक्षण एक बहुत बड़ा तराज़ू मंगवाया और लुट का जो माल था हीरे-जवाहरात,सोना-चांदी सब उस तराज़ू के एक पलड़े पर रख दिया ! और उस फकीर ने उस चमकदार छोटी सी चीज को दुसरे पलड़े पर रख दिया ! उसके रखते ही फकीर का पलड़ा नीचे बैठ गया और सिकंदर का पलड़ा ऊपर उठ गया ! ऐसे क़ी जैसे वह ख़ाली हो, सिकंदर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया ! फकीर के चरणोंमे झूक गया ! और कहा कुछ भी हो, मुझे इसका राज बतलाओ ! फकीर ने कहा राज़ कहना मुश्किल है कहा नहीं जा सकता, इसलिए नहीं कह रहा हूँ! लेकिन तुम झुके हो, इसलिए एक बात और बताये देता हूँ! एक चुटकी धूल उठाई रास्ते से और उस चमकदार चीज पर डाल दी ! और न मालूम क्या हुआ क़ी फकीर का पलड़ा हलका हो गया और ऊपर क़ी तरफ उठने लगा और सिकंदर का पलड़ा भारी हो गया और नीचे बैठ गया! सिकंदर और भी चकित हो गया ! उसने कहा यह मामला क्या है ! पहेलियों को और मत उलझाओ! सीधी-सीधी बात है कहना हो कहो न कहना हो मत कहो ! उस फकीर ने कहा जिज्ञासा से पूछ रहे हो इसलिए बताये देता हूँ! यह कोई खास चीज नहीं है, मनुष्य क़ी आँख है ! इसपर धूल पड जाए तो दो कौड़ी क़ी,धूल हट जाए तो इससे बहुमूल्य और कुछ भी नहीं है ! सारी पृथ्वी का राज्य सारी धन-दौलत फीकी है !
इस बोध कहानी से यही लगता है आँख पर जो लोभ और लालच क़ी धूल पड़ी है उसे हटाने के लिये नेताओं का नैतिक होना बहुत जरुरी है ! तभी देश क़ी जनता का कल्याण होगा और देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी !
suman जी आप सही कह rahi हैं ki netaon ka naitik hona zaroori है kintu ये ही भाव है जो आज मिलना मुश्किल हो gaya है और कुछ कुछ इसके दोषी हम भी हैं जो उन्हें अनैतिक hone ka avsar dete हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानी के माध्यम से बताया ..आँखों पर जमी धूल तो हटती नहीं और दूसरों की आँख में धूल झोंक देते हैं नेता
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी नैतिक कथा।
जवाब देंहटाएंअच्छी बोध कथा .....शुभकामनायें आपको !
जवाब देंहटाएंसुंदर बोधकथा ..... सार्थक और विचारणीय प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा.
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी.
बस अगर इतना समझ लिया कि खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाना है तो यह भ्रष्टाचार की समाप्ति ही होगी।
जवाब देंहटाएंइतनी सुंदर बोध कथा आजके परिवेश में भी उतनी ही सच है. जरूरत अपने अंदर झाकने की है. ना सिर्फ नेताओं को बल्कि हमे भी क्योंकि नेताओं को बनाने और बनाये रखने में हमारी भी जिम्मेदारी है.
जवाब देंहटाएंबहुत सामय़िक और सटीक कथा । धूल कहो या धुंआँ है तो लालच का ही, जब तक आँखों से ये ना हटे ये किसी सही चीज को क्या देखेंगी ।
जवाब देंहटाएंsatik rachna..hardik badhayee ke sath..apne blog pe nimantran bhi
जवाब देंहटाएंbaatein ekdam sateek hain...
जवाब देंहटाएंaur bodh katha ko share karne ke liye bahut-bahut shukriya...
wakai hallat yahi hain...
इसपर धूल पड जाए तो दो कौड़ी क़ी,धूल हट जाए तो इससे बहुमूल्य और कुछ भी नहीं है !
जवाब देंहटाएंअत्यंत शानदार बोध कथा का स्मरण कराया आपने, आज जरूरत इसी बात की है. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत ही अच्छी बोध कथा है ... पर आज तो इंसान की आँखों पे मिट्टी जमी हुयी है उसे निकालना आसान नहीं होगा ...
जवाब देंहटाएंअत्यंत शानदार और सार्थक बोध कथा .....आभार...
जवाब देंहटाएंअच्छी नैतिक कथा....
जवाब देंहटाएंsuman ji
जवाब देंहटाएंnaitikta se bhar pur yah bodh -katha vastav bahut hi prabhav chhodne me saxham hai bahut hi sarahniy prasstuti
bahut bahut badhi
dhanyvaad
poonam