आज फिर तुम लिये
उन सारी मीठी
यादों की मधुर
स्मृति मतवाली
घोल-घोल कर
मलय पवन में,
रजनीगंधा-सी
मन को महकाने
चली आओ तुम
मेरी कविता !
कैसी छायी है
निराशा मनपर
छायी है उदासी
डरा रही मुझको
मेरी ही तनहाई
प्रिय सखी-सी
मुझको बहलाने
दबे-पाँव चली
आओ तुम
मेरी कविता !
जीवन की
रिक्त पाटी पर
इन्द्रधनुषी रंग भरने
जब-तब मेरे घर
चली आओं
तुम मेरी कविता !
कैसी छाई है
जवाब देंहटाएंनिराशा मनपर
छायी है उदासी
डरा रही मुझको
मेरी ही तनहाई
प्रिय सखी-सी
मुझको बहलाने
दबे-पाँव चली
आओ तुम
मेरी कविता !
बहुत सुंदर,
हर बार की तरह एक ओर अच्छी रचना।
"जब-तब मेरे घर
जवाब देंहटाएंचली आओं
तुम मेरी कविता!"
निश्चल कामना - बहुत सुंदर
Bahut pyari aakankshaBahut pyari aakanksha
जवाब देंहटाएं"जब-तब मेरे घर
जवाब देंहटाएंचली आओं
तुम मेरी कविता!"
Bahut Sunder Abhivykti...
मुझको बहलाने
जवाब देंहटाएंदबे-पाँव चली
आओ तुम
मेरी कविता !
सुमन जी, आज तो नये अंदाज में बहुत सुंदर अभिव्यक्ति बधाई
कविता पढ़ते पढ़ते कविता का स्मरण हो आया. :)
जवाब देंहटाएंAtyant Sunder prastuti
जवाब देंहटाएंati sunder.
जवाब देंहटाएंare ye to chupke se mere aangan bhee chalee aaee.
pvitr nimntrn komal bhavnao ke sagr me utrati prstuti .
जवाब देंहटाएंbahut achchi
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...अच्छे शब्द और भाव का अद्भुत संगम...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
कविता के कोमल मन में किसी का दिख जाना .. कविता का सार्थक हो जाना ...
जवाब देंहटाएंजीवन की
जवाब देंहटाएंरिक्त पाटी पर
इन्द्रधनुषी रंग भरने
जब-तब मेरे घर
चली आओं
तुम मेरी कविता !
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी सुन्दर रचना ....