सोमवार, 14 नवंबर 2016

मौन संगीत ...


ध्यान देकर सुनों तो
सन्नाटे की भी
अपनी जुबान होती है
जो बरसाती मेंढकों की
टर्र-टर्र में गुम हो
जाती है !

ध्यान देकर सुनों तो
शब्द,विचार,भावों से परे
मौन का भी अपना
मुखर संगीत होता है
जो अंतर्लीन
 होता है !

बुधवार, 2 नवंबर 2016

बह गया कवि ...

तम की विकट
निशा बीती !
सुहानी भोर में
सूरज की सुनहरी
धुप निकली !
अहम पिघला
गर्माहट से,
भावों की बाढ़
आ गई !
बाढ़ में,
बह गया कवि !
हाथ में धरी
चाय की प्याली
रह गई
धरी की धरी ... !