११ दिसंबर को सद्गुरु ओशो का जन्मदिन होता है ! हम सब ओशो प्रेमी, साधक अपनी अपनी ख़ुशी के अनुसार इस महोत्सव दिन को मनाते है और ख़ुशी के इस उत्सव में आप सब आमंत्रित है !
ओशो "जिनका न कभी जन्म हुआ न मृत्यु" उनके द्वारा कहे गए ये शब्द न केवल उनके अपने संबंध में है, बल्कि सभी बुद्ध पुरुषों के संबंध में कहे गए है क्योंकि बुद्ध पुरुष समय के भीतर अवतरित होते हुए भी समय के पार होते है !
यह तो हमारी अपनी ख़ुशी होती है आदर व्यक्त करने की, उनके जन्मदिवस के उपलक्ष में एक छोटी सी आदरांजलि है यह …
"मानसून आते ही ठंडी-ठंडी हवायें सरसराने लगती है हृदयाकाश में छाये भावों के मेघ मन की धरती पर बरसने को उतावले हो जाते है बारिश की इन भाव भरी रिमझिम फुहारों से जब मन की मिट्टी गीली होने लगती है तब बो देती हूँ इस गीली मिट्टी में फूलों के मन पसंद बीज और जब यह बीज टूटकर,गलकर अंकुरित हो पौधे हवावों की सरसराती ताल पर फूलों सहित झूम झूम कर नाचने, गीत गाने लगते है तब फूलों की इस सुगंध से सारा जीवन महकने लगता है जैसे ".....!
ओशो "जिनका न कभी जन्म हुआ न मृत्यु" उनके द्वारा कहे गए ये शब्द न केवल उनके अपने संबंध में है, बल्कि सभी बुद्ध पुरुषों के संबंध में कहे गए है क्योंकि बुद्ध पुरुष समय के भीतर अवतरित होते हुए भी समय के पार होते है !
यह तो हमारी अपनी ख़ुशी होती है आदर व्यक्त करने की, उनके जन्मदिवस के उपलक्ष में एक छोटी सी आदरांजलि है यह …
"मानसून आते ही ठंडी-ठंडी हवायें सरसराने लगती है हृदयाकाश में छाये भावों के मेघ मन की धरती पर बरसने को उतावले हो जाते है बारिश की इन भाव भरी रिमझिम फुहारों से जब मन की मिट्टी गीली होने लगती है तब बो देती हूँ इस गीली मिट्टी में फूलों के मन पसंद बीज और जब यह बीज टूटकर,गलकर अंकुरित हो पौधे हवावों की सरसराती ताल पर फूलों सहित झूम झूम कर नाचने, गीत गाने लगते है तब फूलों की इस सुगंध से सारा जीवन महकने लगता है जैसे ".....!
कभी ऊपरी यह पंक्तियाँ कविता रूप में लिखी थी क्योंकि सद्गुरु वो मानसून होता है जिस साधक के भी जीवन में प्रवेश करता है सब कुछ बदलने लगता है ! मन की मिट्टी का जरखेज होकर उस मिट्टी में पड़े हुए बीज का फूल बनकर खिलना ही उस बीज की सार्थकता होती है ! हर बीज के प्राणों में जाने अनजाने यही प्यास होती है शायद ! बीज से फूल बन खिलने की प्रक्रिया से गुजरने की कला एक अद्भुत कीमिया है, विज्ञानं है जो एक कुशल बागबान कहे या सद्गुरु यही हमें सीखा सकते है हर बीज के प्राणों में यह प्यास तीव्र से तीव्रतर होती जाये यही कामना करते हुए …
सद्गुरु ओशो के चरणों में शत-शत नमन !
सद्गुरु ओशो के चरणों में शत-शत नमन !
बहुत सुन्दर. शत-शत नमन !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : इच्छा मृत्यु बनाम संभावित मृत्यु की जानकारी
ओशो को सुनना प्रकृति के साथ एकाकार जैसा होना होता है ...
जवाब देंहटाएंअंतिम पैरा पढ़ते पढ़ते ओशो वाणी का जैसे आभास हो रहा हो ... नमन है ओशो और उनके जीवन को ...
बीज में वृक्ष छिपा है, लेकिन बीज वृक्ष नहीं है. बीज में सम्भावनाएँ हैं एक वृक्ष होने की.. यदि बीज के आसपास हम सारी सुविधाएँ जल, वायु, धूप, मिट्टी, खाद आदि जुटा भी लें तो इस बात की कोई गारण्टी नहीं कि वह बीज वृक्ष बन ही जाए. लेकिन बीज बिना वृक्ष बने नष्ट भी हो सकता है.
जवाब देंहटाएंऔर जैसा कि आपने कहा सद्गुरु रूपी मानसून की वृष्टि, सद्गुरु की सुरक्षा, सद्गुरु की शीतल छाया और ज्ञान की धूप मिलकर ही वृक्ष बनने की सम्भावना के प्रकट होने के लिये वातावरण निर्मित करता है...
और जैसा कि ओशो कहते हैं कि मुझे किताबें इसलिये पढनी होती हैं ताकि तुमसे तुम्हारे माध्यम से बात कर सकूँ... उसी प्रकार उनका जन्म-महोत्सव भी हम इसी लिये मनाते हैं ताकि हमारे जीवन का दस्तूर निभाया जा सके... अन्यथा तो जो न जन्मा और न जिसकी कभी मृत्यु हुई!!
भगिनी सुमन! इस महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ!
विनम्र नमन....
जवाब देंहटाएंबहुत सारी अच्छी बातें कह गए ओशो. हालाँकि एक बहुत बड़ा तबका है जिन्होंने आखों में पट्टी बाँध रखी है. काश ओशो की आवाज़ उन तक भी जाए.
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