रविवार, 10 नवंबर 2013

मन को चाहिए चांद-तारे …

भोजन ,
तन की जरुरत है 
रोटी ,कपड़ा ,मकान 
मनुष्य की प्राथमिक 
आवशकतायें  है 
याने की , भूख 
जीवन का सबसे 
बड़ा सच है   !
लेकिन,
मन रूपी परिंदे को 
चाहिए चांद -तारे 
इस सच से परे 
सौंदर्य ,सपने ,
संगीत , काव्य 
इसे मन की 
भूख कहे अथवा 
मन का विलास  !
जब मन 
जीवन की संकुचित 
परिधि पर घूमकर 
कुंठित अनुभव 
करने लगता है ,
सच की खुरदुरी 
जमीन  जब कठोर 
लगने  लगती  है ,
तब वह गढ़ने 
लगता है अपना 
एक  नया आकाश 
जिसको नाम देता है 
प्रेम ,जहाँ  वो अपने 
कल्पना के सुंदर 
पंख फैलाकर स्वैर 
उड़ सके    … !!

9 टिप्‍पणियां:

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  2. कवि मन की भूख तो इसी से तृप्त होती है. अब ये वैज्ञानिक लोग चाँद से पत्थर उठा-उठा के ला रहे हैं धरती पर. और तारों के पीछे भी पड़े हैं. ना जाने भविष्य के कवियों का क्या होगा :)

    सुन्दर रचना.

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  3. सुलझी हुई कविता-
    आभार आदरेया

    रोटी कपड़ा घर बने, मूल जरुरत सत्य |
    इनमे ही उलझा मनुज, मूलभूत ये कथ्य -

    लेकिन संगीत साहित्य कला-का भी अपना महत्व है-

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  4. कहाँ उड़ रहा है मन ?
    दिग्भ्रमित सा !

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  5. परत में भरपूर भोजन हो तो मन भी उड़ता है ... कुंठित भी होता है ... मस्त भी होता है ...
    सब कुछ पेट से ही तो है ...

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  6. प्रेम ,जहाँ वो अपने
    कल्पना के सुंदर
    पंख फैलाकर स्वैर
    उड़ सके … !!

    .......प्रशंसनीय . बधाई

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  7. भूख मिटे तो मन का नंबर लग ही जाता है. मन के पार बेमन है. वैसे रास्ता मन से होकर ही जाता है.

    रामराम.

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  8. कोई सहारा तो चाहिए जीने के लिए......काल्पनिक ही सही .....सुन्दर विश्लेषण !!!

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