मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

आम को खास होने की क्या जरुरत थी ?

कमल प्रतियोगिता 
नहीं करता गुलाब से 
गुलाब जैसा होने की 
गुलाब फ़िक्र नहीं करता 
कमल जैसा होने की 
क्या जूही क्या चमेली 
नीम की कड़वाहट में 
औषधीय गुण देख कर 
मुग्ध होती है कचनार 
की कलि, 
आम अपने खट्टे मीठे 
सहज स्वाभाविक गुण में 
कितना लोकप्रिय था 
उसे खास होने की 
क्या जरुरत थी ??
खास होने के चक्कर में 
उसने अपनी सहज 
स्वाभाविकता खो दी  … !

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हमारे महानगरों में कूड़ा कचरा एक भयावह समस्या …


कल कूड़े कचरे पर सतीश सक्सेना जी की लिखी रचना पढ़ रही थी, उनकी रचना ने मुझे इस लेख को आप तक पहुँचाने के लिए प्रेरित किया आभार सतीश जी ! कूड़ा कचरा आज हमारे महानगरों में एक भयावह समस्या बनती जा रही है ! कचरा किसी के लिए व्यर्थ की चीज है तो किसी के लिए अनर्थ और किसी के लिए जीवन जीने के लिए उपयोगी है ! कैसे आईये इस लेख द्वारा जानते है ! इस लेख को लिखा है न्यूयार्क के एक लेखक ने नाम है एंड्रूऑडो पोर्टर ने और हम तक पहुंचाया है ओशो प्रेमी अनिल सरस्वती ने ! अनिल जी, अगर आप मुझे पढ़ रहे है तो आभार इस महत्वपूर्ण लेख के लिए !

पोर्टर लिखता है    … "मै एक लेखक हूँ, मेरी अच्छी खासी आय है, मेरे पास सुविधाओं का भंडार है ! बस कमी है तो एक चीज की, वह है समय ! मेरे घर में उपयोग के बाद बहुत सी प्लास्टिक और कांच की बोतले जमा होती रहती है जिन्हे मै सुपर मार्केट में जाकर लौटा सकता हूँ और बदले में मुझे मिलेंगे  ५ सेंट प्रति बोतल ! यदि मै बीस बोतलें लौटाता हूँ तो एक डॉलर मिलता है ! अब जितना समय मै इन बोतलों को जाकर लौटाने में लगाउंगा उससे कही अधिक मूल्य का समय गँवा दूंगा ! मै इन बोतलों को कचरे में फ़ेंक देता हूँ ! इस कचरे को उठवाने के लिए मै नियमित रूप से पैसे देता हूँ ! जहाँ मेरे लिए प्लास्टिक की बोतलों का कोई मूल्य नहीं वही भारत में कचरा बीनने वाले बच्चे के इन दो रुपये प्रति बोतल से भरी एक बोरी बड़ी मूलयवान है क्योंकि आज उसने अपना खाना नहीं खाया है "!
पोर्टर आगे लिखता है "जहाँ नार्वे के निवासी अपने कचरे को उठवाने और उसे छांटने के लिए  ११४ डॉलर प्रति टन भुगतान करने के लिए तैयार वही बहुत से देशों के किसान इस कचरे को अपने खेतों में खाद की भांति उपयोग करने के लिए पैसे देते है !"
तारा बाई एक दस वर्षीय बच्ची है जो मुम्बई के कूड़ेदानो से प्लास्टिक और धातुओं से बनी चीजों को इकठ्ठा करती है ! जब उससे पूछा गया कि क्या उसे अपने काम से नफरत है तो वह गुस्से से सर हिलाती हुई बोली, 'नफरत का सवाल ही नहीं है, मै इस काम के कारण जिन्दा हूँ !"
तारा एक किसान की बेटी है ! उनके गांव में आयी बाढ़ से बर्बाद हो वे मुंबई आ गए पर भीख मांगना गंवारा न था तो उसका परिवार कचरा बीनने लगा ! कचरे के ढेरों में रेंगते कीड़ों के बीच से उठाना होता है उन्हें अपनी आजीविका का साधन !
कोई नहीं जानता भारत में कितने कचरा बीनते बच्चे है ! मात्र राजधानी दिल्ली में  ३००००० कचरा बीनने वाले है ! यह आठ घंटा काम करके ५० से १०० रुपये तक कमाते है ! इनके अधिकारों के लिए काम करने वाली एक संस्था चिंतन के अनुसार वे दिल्ली नगर पालिका के ६०००००  रुपये प्रतिदिन बचाते है ! जो काम प्रशासन को करना चाहिए वह बच्चे कर रहे है ! अपने आजीविका के लिए काम कर रहे यह बच्चे  ५० रुपये प्रतिदिन कमाने के लिए प्रत्येक दिन एक भयावह जीवन जीते है ! इन्हे अपनी चपेट में लेने वाले रोगों की सूचि में कैंसर,दमा,टीबी और चर्म रोग शामिल है !
इस असहनीय कार्य से पैदा हुए प्रभाव को कम करने के लिए यह बच्चे कच्ची आयु में ही धूम्रपान, शराब और अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करने लगते है !
अब इन कचरा बीनते बच्चों के पास कोई चुनाव नहीं है ! उन्हें जीवित रहने के लिए अपने जीवन को खतरे में डालना अनिवार्य है ! लेकिन पोर्टर और हम में से वे लोग जिनके पास चुनाव सुविधा है, अपने प्रयास कर सकते है !
भारत के महानगरों में घरों से निकलने वाला कचरा एक भयावह समस्या बनता जा रहा है!
मुंबई का सबसे बड़ा कचरा संग्रह देवनार कचरा स्थल पर होता है ! ११० हेक्टेयर में फैली इस जगह पर ९२ लाख टन कचरे का ढेर लगा है ! मुंबई के घरों से हर रोज  १०००० टन कचरा निकलता है !
देवनार इलाके के पास बसी बस्तियों में प्रत्येक  १००० से ६० बच्चे जन्म लेते ही मर जाते है ! बाकी मुंबई में यह औसत ३० बच्चे प्रति हजार है ! इसके पास रहने वाले लोग मलेरिया, टीबी, दमा और चर्म रोगों से ग्रसित रहते है !
राजधानी दिल्ली भी इससे पीछे नहीं है ! १९५० से लेकर आज तक यहाँ १२ बड़े कचरे संग्रह स्थल बनाये जा चुके है जिनमे लाखों टन कचरा जमा है ! एक जगह पर कचरे का ढेर सात मंजिला ऊँचा है ! इनमे कचरा जमा करने की क्षमता तेजी से घट रही है !
भारत में बढती हुयी जनसँख्या और विकास दर के साथ यह समस्या एक विकराल रूप लेती जा रही है !
भारत में २०२० तक जनसंख्या का अनुमान  … १,३२,०००००० लोग ! भारत में प्रत्येक व्यक्ति आधा किलो कचरा रोज उत्पन्न करता है ! इस गणित से पूरा भारत हर दिन २०२० में  ६,६०,०००  टन कचरा पैदा करेगा यह सारा कचरा कहाँ जायेगा किसी को कोई अनुमान नहीं !  

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

रहिमन धागा प्रेम का ....


"रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय , 
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाय " !!
जिस प्रकार धागा टूटने पर जुड़ नहीं सकता यदि जोड़ भी दे तो गांठ पड़ जाती है उसी प्रकार प्यार के रिश्तों में भी  एक बार दरार पड़ जाय तो  जुड़ना मुश्किल हो जाता है, अविश्वास की गांठ पड़ ही जाती है  उस रिश्ते  में  ! सच  कह रहे है महाकवि रहीम प्रेम बड़ा नाजुक धागा है इतना नाजुक कि इन आँखों से दिखायी भी नहीं  देता और मजबूती से बांध देता है रिश्तों को  ! इगो तोड़ देता है  और प्रेम जोड़ देता है एक व्यक्ति को व्यक्ति से, व्यक्ति को प्रकृति से , और ईश्वरीय परम सत्ता से  !  
साधारणता आज के आधुनिक युग में  आधुनिक युवा प्रेम को महंगे महंगे उपहारों के लेन -देन  के रूप में ही जानने लगे है  अन्य रिश्तों के साथ-साथ प्रेम जैसे पवित्र  रिश्ते को भी सस्ता बना दिया है  ! दोनों तरफ से ह्रदय के पात्र   बिलकुल खाली  हो  तो ऐसे में  कौन किसको प्रेम दे  ??  भिखमंगों  जैसी अवस्था हो गयी है  ! इसी वजह से आज  घर-परिवारों में कलह क्लेश ने जीवन को नरक बना दिया है  ! ह्रदय का पात्र प्रेम से लबालब भरा  हो तभी प्रेम देना संभव  है लेकिन इसे भरने  की  संभावना तभी संभव है जब  इधर से कोई मांग अब  मन में नहीं बची है  !
 प्रेम  व्यक्ति  को  एक नया व्यक्तित्व देता है  भले ही बड़ी गाडी , बडा बंगला , भरपूर बैंक बैलेंस उसके पास न हो पर प्रेम  की  आकूत संपदा  जिसके पास है वही धनवान है मेरे हिसाब से  ! लोभ और लालच पर टिके हुए रिश्ते देर सवेर टूट ही जाते है  !