रविवार, 29 अप्रैल 2012

भूख का काव्य .....



मानसून के आने में अभी थोड़ी देर है ! पर जैसे ही मानसून आने वाला होता है, ठंडी-ठंडी हवाएँ चलने लगती है ! नभ में काले-काले मेघ छाने लगते है! मेघ बरसने को उतावले हो जाते है ! और जब बारिश की रिमझिम फुहार से धरती गीली होने लगती है तब किसान अपने कंधे पर हल रख कर, बैलों की रास संभाले खेतों की ओर उसके पैर उठने लगते है ! अपने मनपसंद बीजों की बुआई करने ! मेरे बाबा भी एक बहुत अच्छे किसान थे ! सभी किसान अच्छे और मेहनती होते है ! अच्छा इसलिए कह रही हूँ उन्हें अपने काम से बहुत प्रेम था ! ऐसे कितने लोग है जिनको अपने काम से प्रेम होता है ? खैर ....गीली मिटटी से जब बीज टूटकर, गलकर, अंकुरित हो हवाओं की सरसराती तालपर झुमझुम कर नाचते, गाते पौधे बड़े होने लगते है सच में तब किसान ख़ुशी से फुला नहीं समाता! वही पास में पेड़ के तने से बंधे हरी-हरी घास चरते उसके बैल, अपने मालिक की ख़ुशी देख कर अपनी पूंछ हिला-हिलाकर प्रसन्नता व्यक्त करने लगते है ! दूर-दूर तक हरी-भरी धरती पर पकी लहलहाती फसल को देखकर लगता है जैसे .....किसान ने धरती पर भूख का काव्य लिख दिया हो ! जी हाँ भूख का काव्य ! भूख शरीर का सत्य है और काव्य जीवन की व्याख्या ! शरीर को क्या चाहिए ? रोजी,रोटी,कपडा ,मकान ! लेकिन यह काफी नहीं ! इन चीजों से शरीर की भूख तो मिट जाती है पर मन भूखा रहता है ! और मन की भूख मिटाने को चाहिए संगीत,साहित्य,काव्य ! पर यह भी काफी नहीं इन चीजों से भी बहुत बार मन उब जाता है ! इस उब में ही एक दिन आत्मा की भूख का पता चलता है ! और जिस दिन जिस घड़ी मन शुन्य हो जाता है रुक जाता है तब मन ध्यान को उपलब्ध हो जाता है ! ध्यान आत्मा का भोजन है !  शरीर, मन, आत्मा की भूख का वर्तुल जिस दिन पूरा होगा उस दिन से जीवन में एक लयबद्धता होगी हार्मनी होगी !

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

दूर क्षितिज के पार .......

जब भी मेरी
भावनाओं को
व्यक्त करने को
मिल जाते है
सही शब्द, सही रूप,
सही आकार तब
जन्म लेती है
एक कविता नई
और अनायास ही
फिर से जीने का
बहाना मिल जाता है
एक नया सच में,
इन कविताओं का
सृजन केवल एक
बहाना ही तो है
सन्देश तुम तक
पहुँचाने का
अन्यथा मै कह
न पाती कभी
तुम सुन पाते
दिल की बात
दूर क्षितिज के
पार
प्रिय तुम्हारा
गाँव !

रविवार, 15 अप्रैल 2012

हाईटेक हुए है बाबाजी ........


ऐसा कोई दिन नहीं है 
ऐसी कोई रात नहीं 
जहाँ नित नये क़िस्से
दिलचस्प घटनायें 
न हो ऐसा कोई 
शहर नहीं है 
साधु-संत ज्ञानी 
आजकल हर टी. वी.
चैनलों पर छाये है 
हाईटेक हुए है बाबाजी !
ये है सब सत्ता के उपासक 
कनक कामिनी के पुजारी !
इनका काम है पाखंड 
रचाकर छलना मासूमों को 
इनके नाम अनेक पर
 लक्ष्य सबका एक 
सत्ता, रुपया, शासन !
सुनो कुछ गुणों तो 
क्या कहता है 
शास्त्र  पुरान
कण-कण में भगवान 
फिर इनका है क्या काम !
आजकल दुनिया में 
यही तो हो रहा है 
उनमे इनमे कोई 
भेद नहीं है 
एक जैसी कूटनीति 
एक जैसा व्यापार 
फल-फूल रहा है 
जरा ध्यान से देखिये 
बड़ा सूक्ष्म भेद है 
दोनों में 
वे करते है देश के नाम 
ये करते है भगवान के !


शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

छलक-छलक आते है ये आँसू......


                           छलक-छलक आते है ये आँसू 
                           बिन बादल बरस जाते है ये आँसू 
                           इन बहते आँसुओं को मत रोको 
                           इन्हें बहने दो !
                           इन आँसुओं के खारेपन में 
                           जीवन के अनंत दुःख धुल जाने दो !

कभी पूर्व दिशा में उगते सूरज को देख कर, कभी पश्चिम दिशा में अस्त होते सूरज को देख कर, कभी कल-कल बहते झरनों,पहाड़ों को देख कर, कभी  आकाश में बगुलों की उडती पंक्तियों को देख कर तो कभी चाँद तारों को देख कर अनायास हमारे आँसू छलक जाते है ! जिसका कोई कारण नहीं होता ! ज्यादातर ख़ुशी और गम में बहने वाले आँसुओं के बारे में ही हमें पता है ! पर कभी-कभी ऐसा भी होता है आँसू स्वयं छलक जाते है आंखोका कोई दोष नहीं होता ! रोने से मतलब हम सब हमारा अपने आपसे नियंत्रण खोने के रूप में परिभाषित करते है ! कोई रोता है तो हम उसे समझाने जाते है क़ि, क्यों रो रहे हो रोना अच्छी बात नहीं है ! रोने क़ी स्वीकृति किसीको भी नहीं है ! फिर भी स्त्रियों का रोना समाज को स्वीकार्य है लेकिन पुरुषों को तो बिलकुल नहीं ! अगर कोई पुरुष भावना में बहकर रोता भी है तो, बड़ा शर्मिंदगी महसूस करता है ! हंसना स्वास्थ्य के लिये जितना जरुरी है रोना उतना ही जरुरी है ! जब हम हमारी स्वभाविक भावनाओं को दबाते है तो, अनजाने ही नकारात्मक उर्जा का जहर इकठ्ठा करते जा रहे है ! रोना कैसे स्वास्थ्य वर्धक है आइये जानते है वैज्ञानिक क्या कहते है !
वैज्ञानिक का कहना है क़ि सुबक सुबक कर रोना साधारण रोने से कई ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक है  क्योंकि हम रोने को मुंह,गले,सीने और पेट की मांसपेशियों द्वारा रोकते है ! सुबक सुबक के रोने से मांसपेशियों में निहित तनाव विसर्जित होता है और इसके पश्चात आप मनों-शरीर में एक गहन शांति का अनुभव करते है ! डाक्टर लोवेंन के अनुसार सायनस और ह्रदय की समस्याएं न रोने से होती है ! इनके अनुसार जो पुरुष सहज रूप से रोते है वे लंबा जीते है ! रोना आँखों के तनाव को भी दूर करता है ! रोना भावों का बर्फ के समान पिघलने जैसा है ! जापान में तो आँसुओं की महिमा को जानकर ऐसे क्लब निर्माण किये गए है, जहाँ रोने -धोने वाली फिल्मे दिखाई जाती है ! ऐसे सीरियल दिखाए जाते है जो बहुत भाउक होती है ! ऐसी किताबे लायब्रेरी में रखी जाती है जो भीतर छिपी गहरी भावनाओं को उभार कर लोगो को रुला सके !
तो देर मत करना जब भी मौका मिले जी भर कर रोईये यह मत सोचिये कौन क्या कहता है ! उसी समय आँसुओं को बरस जाने दीजिये फिर आपकी आँखे जिवंत हो उठेंगी,उनमे एक चमक होगी, और आपकी इन आंखोमे आपका कोई अपना जब आँखे डालकर देखेगा या देखेगी बड़ा सुखद अनुभव होगा !

मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

जेम्स थरबर की कहानी ......


जेम्स थरबर की एक प्रसिद्ध कहानी मुझे आज पढने को मिली ! बड़ी प्यारी बोध से भरी कहानी है ! हुआ यूँ कि सांपो के देश में एक बार एक नेवला पैदा हुआ ! बड़ा शांतिप्रिय था वह नेवला ! लेकिन नेवलों को उसकी शांतिप्रिय बाते पसंद नहीं आती थी ! इसलिए उन्होंने उसे समझाया कि सांप हमारे दुश्मन है ! पर उस नेवले ने कहा, क्यों ? मेरा उन्होंने अब तक तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा ! बड़े बुजुर्गों ने कहा, "नासमझ कही के, तेरा भले ही कुछ भी नहीं बिगाड़ा हो, लेकिन वे सदा से हमारे दुश्मन है ! उनसे हमारा विरोध सदियों से है ! और जातिगत है !  उस शांतप्रिय नेवले ने कहा, जब मेरी उनसे कोई शत्रुता नहीं है तो मै क्यों उनसे शत्रुता पालू? सारे नेवलों कि जाती में यह खबर आग कि तरह फैल गई कि, हमारी बिरादरी में एक गलत सोंच का नेवला पैदा हुआ है !जो सांपो का मित्र है और नेवलों का दुश्मन है ! नेवले के माता-पिता ने कहा 'यह लड़का तो बीमार प्रतीत होता है ! उस नेवले के भाईयों ने कहा यह हमारा भाई तो बुजदिल लगता है ! उसे अनेक विधा समझाया गया कि.हम सांपो के दुश्मन है उनको मार डालना हमारा कर्तव्य है, क्यों कि उनके कारण ही सारी बुराई है ! लेकिन शांतिप्रिय नेवले ने कहा बुराई और अच्छाई तो दोनों में समान है जैसे हम में कोई संत है कोई शैतान वैसे ही उनमे भी है ! खबर फैल गई कि, यह नेवला नेवला नहीं सांप ही है उसकी शकल नेवले क़ी है पर आत्मा वस्तुत; सांप क़ी ही है ! बड़े बूढ़े इकट्ठे हुये बहुत समझाया पर नेवले पर उनके समझाने का कोई असर नही हुआ ! अंत में पंचायत ने यह फैसला सुनाया क़ी इस गद्दार को फांसी दिया जाए ! फिर उस नेवले को सभी ने मिल कर फांसी दे दी !

इस कहानी के अंत में जेम्स थरबर कहते है क़ि, अगर तुम अपने दुश्मनों के हाथ न मारे गए, तो अपने मित्रों के हाथ मारे जाओगे !

इस कहानी को पढ़कर सच में मुझे ऐसा लगा बच्चा जब पैदा होता है तो केवल मनुष्य होता है जैसे जैसे बड़ा होता है समाज क़ी शिक्षा,सभ्यता संस्कृति से एक खास नाम,जाती धर्म का हो जाता है ! उसी रंग में रंग जाता है, उन्ही सब परम्पराओं को जीवन पर्यंत निभाता है ! कितनी ही मूढ़  परम्पराएँ क्यों न हो, जो सोच समझ कर लीक से हटकर चलते है शायद वे ही प्रतिभाशाली व्यक्ति होते है ! लेकिन परिवार समाज के लोग उसे पसंद नहीं करते ना ही उसे सहन कर पाते है !

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

मसला पति-पत्नी का, मतलब हंसने का ........


इन दिनों एक के बाद एक व्यस्तताओं में उलझी रही हूँ ! इसलिए ब्लॉग पर नियमित आना नहीं हो रहा है ! वैसे आजकल शादियों का सीजन भी चल रहा है ! कुछ प्यारभरे रिश्ते मनुष्य चाहकर भी मजबूरीवश निभा नहीं सकता और कुछ रिश्ते निभाना उसकी मज़बूरी बन जाती है ! ऐसा ही एक रिश्ता है पति-पत्नी  का ! इसी सिलसिले में आज हंसने हसाने का मूड बना है और आपके लिये खास चुन-चुन कर लेकर आई हूँ कुछ रोचक चुटकुले !
  • सफल शादी का राज .......राज को राज रहने दो !
  • शादी ऐसे ही है जैसे कि होटल में खाना खाने जाना ! जब आपका आर्डर किया हुआ खाना आता है तो आप सोचते है कि बढ़िया होता आपने वह आर्डर दिया होता जो दुसरे ने दिया है !
  • सफल शादी का राज है कुछ जरुरी शब्द ....मै क्षमा चाहता हूँ ! तुम सही हो !
  • जरा सोचिये यदि शादी नहीं होती तो सारी दुनिया के पुरुष यही सोचते रहते कि, उनमे कोई कमी है ही नहीं !
  • पनी पत्नी का जन्मदिन याद रखने का सबसे आसान तरीका है ....एक बार भूल कर दिखाओ !
  • स्त्री यह सोचकर  पुरुष से शादी करती है कि शादी के बाद वह बदल जायेगा और वह नहीं बदलता !  पुरुष यह सोचकर स्त्री से शादी करता है वह बदलेगी नहीं  और वह बदल जाती है !
  • मनोचिकित्सक ने मरीज से कहा .....तुम्हारे घर में तुम्हारी औकात न के बराबर है यह अहसास तुम्हे बचपन से है या विवाह के बाद से ! मरीज ने कहा ...विवाह के बाद से ! फिर तुम बिलकुल ठीक हो ! मनोचिकित्सक ने निश्चिन्त होकर कहा !
  • एक आदमी ने अख़बार में विज्ञापन दिया .....पत्नी चाहिए, .दुसरे दिन उसको सेकड़ो पत्र मिले ! सभी ने लिखा था तुम मेरी ले जा सकते हो!
  • ससुराल से पहली बार मायके लौटी बेटी ने माँ को बताया .......माँ, वे कविता भी लिखते है ! बेटी, कुछ न कुछ बुराई तो हर इनसान में होती है ! माँ बोली !

मित्रों, मनुष्य का अहंकार जब एक दुसरे का उपयोग करना चाहता है तब हिंसा होती है ! फिर चाहे कोई भी रिश्ता क्यों न हो उसे निभाना दुष्कर होगा ! प्रत्तेक व्यक्ति साध्य है साधन नहीं, यह भाव जब मन में हो तो हर रिश्ता गरिमामय बन जाता है ! आप क्या कहते हो? ......