शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2011

इस बार दीवाली फीकी रही !


     इस बार दीवाली पर मध्यम वर्ग खासा प्रभावित रहा है ! एक ओर आसमान छूती महंगाई तो दूसरी ओर आंध्र, तेलंगाना के झगडे ! पृथक प्रान्तों को लेकर आन्दोलनों ने इन दिनों आम जनता को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा ! काम धंदे पर इसका असर पड़ने से सबकी जेबे ख़ाली-खाली रही ! जैसे-तैसे जुगाड़ कर त्यौहार पर माता लक्ष्मी का स्वागत हुआ ! परंपरा के अनुसार दीवाली मनाई गई ! लेकिन हर किसी के मन में एक ही प्रार्थना रही की, हे माँ लक्ष्मी जैसे भी हो महंगाई दूर करो और सबके घर आकर हम सबको धन धान्यों से संपन्न कर दो !  पता नहीं माँ लक्ष्मी ने सुना या नहीं !
     मध्यम वर्ग की मजबूरियों का असर इस बार बाजार पर भी काफी पड़ा है ! इस बार खरीददारी करने वाले लोग बहुत कम मात्रा में दिखाई दिये! महंगे पटाखों की वजह से स्टॉलों पर ग्राहक नहीं के बराबर थे ! एक तरह से अच्छा ही हुआ ! आतिशबाजी कम हुई और प्रदुषण कुछ तो कम हुआ ! मुझे तो इस बार दीवाली पर बस एक बात ज्यादा खुश कर गई वह है अपने सेल फोन पर मैसेजेस,"हैप्पी दीवाली" से लेकर विभिन्न किस्म के मेसेजेस जिन्हें पढ़कर आधुनिक युग के इस टेक्निकल दीवाली पर थोडा आश्चर्य हुआ, थोड़ी हँसी आई और साथ में अपनों के नजदीक होने का अहसास भी हुआ ! कुल मिलाकर कुछ कम कुछ ज्यादा सभी ने इस तरह दीवाली मनायी ! 

                                      जीवन भर अंधियारे में जो 
                                      गुजारते है ज़िन्दगी अपनी
                                      आओं उनके द्वार पर हम रख 
                                      आते है एक स्नेह का दीप!  
                                    

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

परंपराओं का अंधानुकरण कितना सही है ! ( स्मृति )


प्रतिदिन अपने चारो ओर विभिन्न तरह की घटनाएँ घटती रहती है ! कही अनुकूल तो कही प्रतिकूल ! हर पल घटती इन घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता है क़ि जीवन घटनाओं का क्रम मात्र है ! कोई इन घटनाओं का मूक अनुभव करता है तो कोई उन्हें रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है! ऐसी ही एक घटना का जिक्र मै यहाँ पर कर रही हूँ, जो मेरी स्मृति में बसी हुई है !
स्नेहा, मेरी अच्छी पड़ोसन होने के साथ-साथ अच्छी सहेली भी है ! मेरे और उसके बच्चे एक ही उम्र के होने के कारण अधिकतर इकट्ठे ही खाते-खेलते है ! हमारे पारिवारिक संबंध बहुत ही अच्छे और मधुर है ! स्नेहा स्वभाव से शालीन और सुशील है, पर थोड़ी अंधविश्वासी है ! बिना सोचे-समझे किसी भी बात को आंख मूंदकर मान लेती है ! उसके इस स्वभाव के कारण हम दोनों में कभी-कभी मीठी तकरार भी हो जाती है, किंतु उसका असर हमारी दोस्ती पर कभी नहीं पड़ा ! एक बार स्नेहा क़ी बहन सुनीता, जो अमेरिका में रहती है, अपने परिवार के साथ दिवाली क़ी छुट्टियाँ  मनाने भारत आयी ! बहन के आने क़ी ख़ुशी में स्नेहा के घर दिवाली का आनंद दुगुना हो गया ! दोनों बहने मिलकर खूब सारी तैयारियां करने लगी ! दिवाली का त्योहार आने में कुछ ही दिन बाकी थे ! सुबह से शाम तक खूब सारी शॉपिंग होती, फिर खरीदी गई चीजों पर चर्चा और साथ ही होती बच्चों क़ी मस्ती ! गहने,कपडे, मित्रों-रिश्तेदारों के लिये तोहफे आदि क़ी खरीददारी हो चुकी थी ! सिर्फ लॉकर से त्योहार पर पहनने के लिये स्नेहा के गहने लाने थे, सो वह काम भी हो गया! दिवाली के दिन सुबह से ही दोनों बहने विशेष पकवान बनाने व घर की सजावट में जुट गयी! शाम होते होते सारी तय्यरियाँ पूरी हो गयी ! सारा घर आंगन रोशनाई से भर गया! गली मोहल्ले में आतिशबाजी का शोर बढ़ने लगा! बच्चे बूढ़े बिना भेद-भाव के इसका मज़ा उड़ाने लगे ! फुलझड़ियों की चमक और पटाखों के शोर ने निराला समां बाँध दिया था! बड़ी ही धूम-धाम से लक्ष्मी जी की पूजा की गयी! पकवानों का स्वाद चखने के बाद बारी आई ताश खेलने की! देर रात तक ताश की बाजिया चलती रही! रात के तीन बज गए! स्नेहा के पति घर के दरवाजे व खिड़कियाँ बंद करने की सलाह दे कर अपने बिस्तर पर चले गए! किन्तु स्नेहा  ने यह कहते हुये उनकी बात का विरोध किया कि आज कि रात घर कि खिड़कियाँ व दरवाजे खुले रखने से लक्ष्मी जी घर में प्रवेश करती है! यदि यह सब बंद हो तो लक्ष्मी जी नाराज़ हो कर लौट जाती है! ताश खेलते-खेलते एक-एक करके न जाने सब लोग कब जाकर सो गए पता ही नहीं चला! सुबह दरवाजे के बाहर खड़ी कामवाली बाई ने आवाज़ दी तो आँख खुली! स्नेहा ने कमरे से बाहर जाकर देखा तो  आंख खुली कि खुली रह गयी! चोर सारा कीमती सामान, गहने आदि सब बटोर कर चम्पत हो गए थे! उसमे स्नेहा क़ी बहन का भी काफी सारा सामान था! शायद चोर- समाज में इस बात का विश्वास होगा कि अगर दिवाली के दिन अच्छा माल हाथ लगा तो  वर्ष भर सफलता मिलेगी! अंध विश्वास के चलते स्नेहा और उसके परिजनों को सिवाय पछतावे के कुछ नहीं मिला! त्योहार का सारा उत्साह व जोश तो काफूर हो गया!
इस वैज्ञानिक युग में भी परम्पराओं का अन्धानुकरण पागलपन ही है! परम्पराओं को ज़रूर निभाना चाहिए, किन्तु निश्चित सीमा तक ही! हमारा समाज कभी मानसिक व भौतिक रूप से इतना संपन्न रहा होगा कि किसी को दरवाजे लगाने और किसी को चोरी करने कि ज़रूरत ही रही नहीं होगी! आज चारो ओर भौतिक संपदाए तो बढ़ रही है पर आदमी तंग दिल होता जा रहा है! भौतिक संपदाए हमें आराम तो देती है पर वास्तविक रूप से मन को आनंद प्रदान नहीं कर सकती! वास्तविक आनंद तो एक दुसरे के प्रति प्रेम व सौहार्द्र से ही मिलता है क्योंकि प्रेम ही एक ऐसा सेतु है, जो एक को दुसरे से जोड़ता है! 
मिट्टी के दिये घर-आंगन को ही प्रकाशित करते है! किन्तु मन का अंधकार दूर करने के लिये हमें ज्ञान के प्रकाश क़ी छोटी- सी किरण क़ी ज़रूरत होती है, जिसका अनुसरण कर प्रकाश के स्त्रोत तक पहुंचा जा सकता है! और जीवन को आलोकित किया जा सकता है! तभी तो हम वास्तविक अर्थों में दिवाली मना सकेंगे! अज्ञान ही अंधकार है और ज्ञान ही प्रकाश !  आप सब क़ी दीवाली शुभ हो !

(हिंदी मिलाप पत्रिका में पुरस्कृत रचना!)   

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

मेरा चाँद ....



कैसे करे कोई 
उसका दीदार 
मेरा चाँद तो,
बादलों के शहर में 
रहता है 
छूना तो 
दूर की बात 
टकटकी 
लगाने से ही 
मैला हो जाता है !


( मन चंद्रमा का प्रतीक है )

रविवार, 9 अक्तूबर 2011

मुहब्बत की चाँदनी खिली है ..........



शरद चाँदनी खिली है 
अब छोड़ो भी बहाना 
जैसे भी हो 
आओं छतपर 
रात है नशीली चाँदनी 
नशीला आज मन भी 
बात है कुछ खास 
तनिक बैठो पास 
कुछ कह लेने दो 
कुछ सुन लेने दो 
धडकनों को 
आपस की बात 
आओं 
चाँदनी ओढ़े 
बिछाये चाँदनी
हम- तुम 
आकंठ पिये
अंजुली भर-भर कर 
मुहब्बत की चाँदनी
खिली है !

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

"कैफे दि हैवन"

रावण अपने ही वध क़ी दशहरे पर चल रही तैयारियों को देखता हुआ, शहर में चल रहे हंगामे को देख कर अचंभित-सा होता हुआ टहलते हुए एक कैफे में दाखिल हुआ ! कैफे का नाम था "कैफे दि हैवन" !  सच में स्वर्ग जैसी सारी सुविधाएँ उसमे उपलब्ध थी! कॉफ़ी से लेकर सोमपान तक! रावण ने वेटर को बुलाया और मीनू लेकर आने को कहा ! उसने मीनू पर एक नजर डाली ! गरम-गरम कॉफ़ी पीने का मन हुआ ! उसने देखा कि ५० रूपये एक कॉफ़ी के लिये ! वेटर को कॉफ़ी लाने का आर्डर दिया! कॉफ़ी पीकर रावण का मन बड़ा प्रसन्न हुआ ! रावण ने वेटर को बिल लाने को कहा ! बिल आया ५०० रूपये का ! रावण एकदम क्रोधित हुआ और वेटर से कहा .."पागल तो नहीं हो तुम ? मीनू में साफ-साफ लिख़ा हुआ है ५० रूपये और तुम बिल लाये हो ५०० रूपये का" ! रावण का विकराल रूप देख कर वेटर थर-थर कांपने लगा ! उसने डरते-डरते कहा शांत रहिये मै अपने मैनेजर को बुलाकर लाता हूँ ! उतने में मैनेजर भी शोर सुनकर दौड़ता हुआ आया ! और रावण से क्रोध  का कारण जानकर कहा- "श्रीमान आप ठीक कहते है कॉफ़ी ५० रूपये ही है, लेकिन जरा गौर से ध्यान से मेनू पढ़िए ! ५० रूपये लिख़ा है मीनू में पर हेड ! और आपके तो दस सिर है इसलिए ५०० रूपये का बिल आया है !" मैनेजर ने बड़ी शांति से जवाब दिया ! और रावण ने अपने दसो सिर पिट लिये !
    
         पाठक सोच रहे होंगे राम द्वारा रावण का वध तो कब का हो चूका है ! फिर रावण कैफे दि हैवन कैसे पहुँच सकता है ? कैसे कॉफ़ी पी सकता है ?
खैर यह तो एक मजाक था पर, जिस प्रकारसे हमारे देश में भ्रष्टाचारी रावण आम जनता के हक्क को छिनकर देश को लुट रहे है ! और हम ऐसे रावणों को छोड़कर लंकापति रावण के कागज के पुतले को कब तक जलांयेंगे ?  दशहरे पर हमारा इस प्रकारसे  हर साल रावण को जलाना ही साबित करता है कि रावण जला नहीं है ! जलकर भी अमर हुआ है ! आखिर है तो मायावी..........मजा तो तब है जब ऐसे भ्रष्टाचारी रावण जलेंगे.!