बुधवार, 31 अगस्त 2011

धार्मिक आस्था के साथ रखे पर्यावरण का ध्यान !



जीवन में शोक, चिंता और दुखों को भुलाकर मनुष्य सब के साथ बैठकर कुछ पल हँस सके, गा सके, नाच सके इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही हमारे त्यौहार बने होंगे! इसके अलावा हमारे हर त्यौहार अपना-अपना ऐतिहासिक, सामाजिक महत्त्व भी रखते है! अब कल से दस दिनों तक चलने वाला हमारा पवित्र त्यौहार है गणेश चतुर्थी! लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने गणेश पूजा की परंम्परा को संवारकर जनसंघर्ष का मार्ग प्रशस्त किया! धर्म, संस्कृति और अस्मिता को जीवंत कर तिलक जी ने राष्ट्रिय जनचेतना को एकसूत्र में आबद्ध किया! किन्तु आज त्योहारों के पीछे जो सदभावनाएँ है उसे भुलाकर त्यौहार केवल मौज, मस्ती और दिखावे भर के रह गए है! दस दिन के  इस उत्सव के बाद आता है, हर साल की तरह गणपति विसर्जन! हमारे हैदराबाद शहर में हुसैन सागर, जिसे टैंक बंड भी कहते है सभी को देखने लायक मनोरंजक स्थल है! इस टैंक बंड के बिचोबीच भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा सारे परिसर को एक अनोखा सौन्दर्य प्रदान करती है! कभी मेरा यह प्रिय स्थान रहा है......! टैंक बंड के बस थोड़ी दूर पर ऊँची पहाड़ियों पर बसा है बिरला मंदिर! अगर आप रात के समय टैंक बंड के किनारे बैठ कर बिरला मंदिर को देखेंगे तो ऐसा लगेगा मानों स्वर्ग धरती पर उतर आया है! जगमग दीपों की रौशनी पानी पर देखते बनती है ! कई वर्षों से गणेश विसर्जन यहीं पर होता है! सो अब की बार भी यही होगा! भले ही इस सागर का पानी पीने के लिये उपयोग में नहीं लाया जाता पर, सुना है की यहाँ टैंक बंड पर जो लोग मोर्निंग वाक् के लिये जाते है उनके स्वास्थ्य पर जल प्रदूषण का बुरा असर पडने लगा है! प्रदूषित जल अनेक बिमारियों को न्योता भी देता है! हर शहरों में यही हो रहा है! भले ही गणेश विसर्जन की परंपरा लोकमान्य तिलक के ज़माने से आ रही है, पर आज वो पहलेवाली परिस्थितियाँ नहीं रही ! तब गणेश की छोटी-छोटी मूर्तियाँ बनाई जाती थी! वह भी नदी तट की गीली मिट्टी से बनाये जाते थे ! जो आसानी से विसर्जन के बाद पानी में घुल जाती थी! आज गणेश की मूर्तियाँ बड़ी-बड़ी और हजारों, लाखों रूपये की बनाई और खरीदी जाती है! इन मूर्तियों के प्रयोग में लगने वाला तत्व और रंगों में जो केमिकल्स का प्रयोग होता है वह अनैसर्गिक तो होता ही है उससे जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण भी होता है! कितना अच्छा होता यदि हमारी मिडिया, हमारी सरकार, सामाजिक  संस्थायें इसपर जनजागरूक अभियान चलाते!
सागर, नदियाँ, झीले हमारी प्राकृतिक धरोहर है इनकी रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है! आज त्यौहारों को अंधश्रद्धा की नजर से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने की जरुरत है! वर्ना यह एक गंभीर समस्या बन सकती है!



( सभी ब्लोगर मित्रों को ईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें )


शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

जीवन के प्रति सकारात्मक सोच

जिंदादिल, खुशमिजाज व्यक्तित्व का सीधा संबंध हमारे अपने स्वभाव पर ही निर्भर करता है! आपने देखा होगा कुछ लोग बात-बात पर चिढ़ते है! दूसरों की कामयाबी पर कुढ़ते है! हमेशा कटु वचन बोलना, व्यंग्यात्मक लहजा अपनाना, छोटी-छोटी बातोपर लड़ाई-झगडा करना इनके स्वभाव में  शामिल होता है! धीरे-धीरे इस प्रकार का स्वभाव इनकी रोजकी आदत बन जाती है! तब उनके अपने लोग ही पराये बन जाते है! नाते रिश्तेदार तक उनसे दूर रहना पसंद करते है! परिवार में अपने ही लोगों का स्नेह, सम्मान घटने लगता है! ऐसे व्यक्ति समाज से कटकर अंत में निपट अकेले रह जाते है! इनसे उलट कुछ व्यक्ति हमेशा हँसते-खेलते प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सदा प्रसन्न दिखाई देते है! उनके इस जिन्दादिली, खुशमिजाजी का राज है जीवन के प्रति सकारात्मक सोच और संवेदनशीलता! इसके अलावा मोर्निंग वाक्, योग, ध्यान, प्राणायाम, पौष्टिक और संतुलित आहार, इन सब का भी जीवन में बड़ा महत्व है ! जो नियमित व्यायाम, मोर्निंग वाक् करते है वे सदा स्वस्थ और दीर्घजीवी रहते है! घर का काम हो चाहे आफिस,  काम करना पैसे कमाना हमारी रोजमर्रा की अनिवार्य जरुरत है! दिन के चौबीस घंटों में अगर एक घण्टा हमारे स्वास्थ्य पर, खुश रहने के लिये  खर्च करेंगे तो क्या बुराई है ? इसके लिये हमें पैसे तो चुकाने नहीं पड़ते! अगर खुशिया मुफ्त में मिल रही है तो क्यों चूकना?
 नैराश्यपूर्ण एवं नकारात्मक सोच के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाकर, प्रकृति में व्याप्त उस दिव्य शक्ति में विश्वास कर क्यों न सकारात्मक सोच को आज और अभी से अपनाया जाए!

शनिवार, 6 अगस्त 2011

नैतिक रूपांतरण की जरुरत है ....

आये दिन अख़बार की सुर्ख़ियों में आजकल जिस प्रकार की भ्रष्टाचार की खबरे छप रही है, उसे देखकर लगता है कि देश में भ्रष्टाचार की आँधी सी आयी हुई है! जिस भारत को लोग कभी पुण्यभूमि कहते नहीं थकते थे आज उसी पुण्यभूमि पर प्राय: हर मनुष्य का स्वार्थ साधन ही एक प्रमुख लक्ष्य बन गया है! बड़े-बड़े उद्योगपति, व्यापारी, न्यायाधीश, आफिसर्स, अध्यात्मिक धर्म के ठेकेदार, शिक्षण संस्थाये शायद एक संस्था एक मनुष्य ढूँढना मुश्किल है जो भ्रष्टाचार में लिप्त न हो! देश के रक्षक ही जब भक्षक बन गए हो तो जनता का हित देश का उद्धार कैसे संभव है?  वोट की खातिर बड़े-बड़े वायदे नीतिपरक बाते करनेवाले सत्ता हाथ में आते ही उच्च कोटि के भ्रष्टाचारी साबित होते है! अक्सर हम लोगों को कहते हुये सुनते है क़ि, सत्ता और शक्ति अच्छे-अच्छों को भ्रष्ट बना देती है ! मुझे तो बिलकुल असंगत तर्क लगता है यह ! शक्ति और सत्ता तो केवल बहाना है ! मनुष्य के व्यक्तित्व में ही कही गहरे में छुपी होगी भ्रष्ट मानसिकता तभी तो, सत्ता उस भ्रष्टाचार को और भी उजागर कर देती है ! सत्ता क़ी आड़ में छुपा लोभ और लालच का परिणाम आज भ्रष्टाचार के रूप में सारे मुल्क को भोगना पड रहा है !
 ओशो साहित्य में बहुत सुंदर बोध कहानी है यह! जो क़ी मुझे पढने को मिली ! महान सिकंदर जब भारत आया था तो उसने एक फकीर के हाथ में एक चमकती हुई चीज देखकर पूछा क़ि,यह क्या है ? वह फकीर बोला मै बता नहीं सकुंगा! यह राज बताने का नहीं है! लेकिन सिकंदर जिद पर अड़ गया ! कहा मैंने जीवन में कभी हार नहीं मानी है ! आपको बताना ही पड़ेगा! तब फकीर ने कहा, एक बात बता सकता हूँ क़ि, तुम्हारी सारी धन-दौलत इस छोटी सी चीज के सामने कम वजन क़ी है ! सिकंदर ने ततक्षण एक बहुत बड़ा तराज़ू मंगवाया और लुट का जो माल था हीरे-जवाहरात,सोना-चांदी सब उस तराज़ू के एक पलड़े पर रख दिया ! और उस फकीर ने उस चमकदार छोटी सी चीज को दुसरे पलड़े पर रख दिया ! उसके रखते ही फकीर का पलड़ा नीचे बैठ गया और सिकंदर का पलड़ा ऊपर उठ गया ! ऐसे क़ी जैसे वह ख़ाली हो, सिकंदर किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया ! फकीर के चरणोंमे झूक गया ! और कहा कुछ भी हो, मुझे इसका राज बतलाओ ! फकीर ने कहा राज़ कहना मुश्किल है कहा नहीं जा सकता, इसलिए नहीं कह रहा हूँ! लेकिन तुम झुके हो, इसलिए एक बात और बताये देता हूँ! एक चुटकी धूल उठाई रास्ते से और उस चमकदार चीज पर डाल दी ! और न मालूम क्या हुआ क़ी फकीर का पलड़ा हलका हो गया और ऊपर क़ी तरफ उठने लगा और सिकंदर का पलड़ा भारी हो गया और नीचे बैठ गया! सिकंदर और भी चकित हो गया ! उसने कहा यह मामला क्या है ! पहेलियों को और मत उलझाओ! सीधी-सीधी बात है कहना हो कहो न कहना हो मत कहो ! उस फकीर ने कहा जिज्ञासा से पूछ रहे हो इसलिए बताये देता हूँ! यह कोई खास चीज नहीं है, मनुष्य क़ी आँख है ! इसपर धूल पड जाए तो दो कौड़ी क़ी,धूल हट जाए तो इससे बहुमूल्य और कुछ भी नहीं है ! सारी पृथ्वी का राज्य सारी धन-दौलत फीकी है !
        इस बोध कहानी से यही लगता है आँख पर जो लोभ और लालच क़ी धूल पड़ी है उसे हटाने के लिये नेताओं का नैतिक होना बहुत जरुरी है ! तभी देश क़ी जनता का कल्याण होगा और देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी !