सोमवार, 20 जून 2011

सर्द हवाएँ कुछ यूँ कहने लगी है ठंडे-ठंडे स्पर्श से ...........

मानसून के आते ही, सर्द हवाएँ बहने लगी है ! नभ में आषाढ़ के मेघ घिरने लगे है ! पुरवाई के हर झोंके में एक अपरमित उल्हास भरा हुआ है ! नभ से लेकर धरती तक जन-जीवन बारिश के नैसर्गिक आनंद में डुबने लगा है ! मौसम कुछ-कुछ गुलाबी होने लगा है !
                 सर्द हवाएँ  कुछ यूँ
                 कहने लगी है
                ठंडे-ठंडे स्पर्श से
                तन-मन भिगोने लगी है !
  बारिश में बच्चों को भीगना, कागज की नाव बनाकर आसपास के जमे हुए पानी में उनको तैराना बहुत अच्छा लगता है ! आंगन में रिमझिम बरखा बरस रही हो,आपने घर के सब खिड़की, दरवाजे बंद कर दिए हो, ताकि बच्चों के स्कूल
के होमवर्क में कोई व्यवधान न पड़े ! किन्तु आंगन में ,
जोरजोरसे बरसती बरखा का शोर बच्चों को बाहर आने के लिए निमंत्रण ही दे
रही है ! ऐसे में स्कूल का होमवर्क कैसे होगा भला ? आखिर कर
लाडली बिटिया ने अपनी मम्मी से कह ही दिया ........

                 ममा छोड़ो होमवर्क कल कर लुंगी
                 ऐसी रिमझिम जाने फिर कब होगी
                 छम-छम पानी में खेलूंगी
                 मुखड़े पर मोती झेलूंगी
                 भोली-सी नादानी करने दो
                 मम्मी बारिश में जाने दो !
वैसे भी आजकल के बच्चे हमेशा टी.वी., कंप्यूटर से चिपके रहते है ! आज कुछ बारिश में भीगने का मजा लुटने दीजिये उनको! आसमान में उमड़ते घटाओं को देखकर किसी के भी मन में हिलोर उठना स्वाभाविक है ! छमा-छम बारिश हो,चारोओर खुशगवार नज़ारे हो, ऐसे में हर चीज शराबी सी लगने लगती है !किसी कवि ह्रदय पति का मन भी रूमानी हो गया है ! अपने पत्नी के साथ छतपर बारिश में भीगने का आनंद लेना चाहता है,वह है की घर-गृहस्थी  के कामो में उलझी है !
                 छोड़ो भी काम गृहस्थी के
                 जैसे भी हो आओ छत पर
                 देखो तो क्या यौवन उमडा
                 मेघो वाली अल्हड रुतु पर
                 जामुनी घटा घिर आई है
                 पछुआ ने लट बिखराई है
                 बूंदे तिर आयी नयनों में इन बूंदों की अगवानी मे
                 हम दोनों साथ भीगे बरखा के पहले पानी में !
ऐसे कविहृदय पति बहुत कम होते है ! इसबार उनकी ओर से ऐसा कोई निवेदन आये तो झट से मान लीजिये ! दूर देश में रहने वाला प्रियतम अपनी प्रेयसी के मन में अपने यादोंकी बहुत सारी सौंधी-सौंधी महक छोड़ गया है ! जो बारिश के इस मौसम में उसकी याद बनकर उमड़ रहे है ! अपने घर की बालकनी में प्रिय के विरह में उदास सी खड़ी बारिश से मन बहलाने की कोशिश कर रही है ! रिमझिम बरसती बूंदों ने, काली -काली घटाओं ने, मदमस्त बहती हवाओं ने उसके मन को बहलाने की खूब कोशीश की पर सब व्यर्थ.......
                 प्यार से भीगा गगन है
                 दर्द से भीगा हुआ ये मन है
                  बरसे बरखा रिमझिम-रिमझिम
                  आज नयन भी खूब बरसे
                  रिमझिम-रिमझिम!
बारिश के इस सुहाने मौसम में कविताओं से भीगी हुई यह रचना, किसी के यादों की बारिश बन कर आप सब के अंतर तक को भिगोये बस यही कामना है! 

          (छोड़ो भी काम गृहस्थी के..... ओशो साहित्य से साभार)

मंगलवार, 14 जून 2011

संसार में निर्वाण खोजना क्या इतना आसान है ?

बुद्ध जब सुबह हमेशा की तरह भिक्षा मांगने एक घर के सामने रुक गए ! तब पता नहीं उस घर की गृहिणी किस क्रोध में घर को बुहार रही थी, जब बुद्ध को घर के सामने भिक्षा मांगते देखा तो क्रोध के आवेश में सारा घर का कचरा बुद्ध पर फ़ेंक दिया ! इस अप्रत्याशित घटना से कुछ पल के लिए बुद्ध भी हतप्रभ रह गए ! उनकी समझ में नही आया की, क्या हुआ है ! जब सारा शरीर बदबूदार हो गया तो, बुद्ध जैसे  करुणावान मनुष्य का मन भी पलभर को आहत हुआ  होगा वेदना से, उस दिन उन्होंने फिर कोई भिक्षा नहीं मांगी ! और अपने स्थान पर जाकर वे ध्यानमग्न होकर बैठ गए ! जैसे कुछ हुआ ही नहीं ! कहानी यही तक कहती है पर मुझे पता है आगे क्या हुआ होगा ! अब क्या भिक्षा मांगना, उस दिन उस घटनासे उनकी सारी भूख ही,मर गई होगी और क्या ? हमारे आस-पास भी बहुत सारे ऐसेही लोग अपने-अपने घृणा का कचरा लिए बैठे है ! जरासा आपने अपने मन का द्वार खोला नहीं की, फ़ेंक देते है उस कचरे को, सारी घृणा उंडेल देते है आप पर ! कितना भी सहनशील,संवेदनशील मन क्यों न हो आखिर बिखर ही जाता है ! दुखी होता है ! जीवन का सारा उत्साह जैसे समाप्त होने लगता है !
   साँझ जब बुद्ध अपने भिक्षुओंको अपने अमृतमय प्रवचन सुना रहे थे तब,वह गृहिणी  वहां आकर, बुद्ध के चरणों में सर रख कर रोते हुए माफ़ी मांगती है ! सुबह की हुई भूल पर बहुत पछतावा भी करती है तो , पता है तब महात्मा बुद्ध ने क्या कहा ?उन्होंने कहा अरी बावरी छोड़ सुबह की घटना को, मै तो कब का भूल गया ! तू भी भूल जा ! क्योंकि सुबह क्रोध करनेवाला वाला कोई और मन था  ! अब माफ़ी मांगने वाला कोई और है ! सब मन का खेल है! और महात्मा बुद्ध ने उस गृहिणी को क्षमा कर दिया ! हम ऐसा क्षमा भाव कहाँ से लाये, ऐसे मनुष्यों को क्षमा करने के लिए! बुद्ध जैसा असाधारण मन उनके जैसी करुणा कहाँ से लाये हम ?  रुग्ण  मानसिकता से भरे मनुष्योंके के बीच रहकर संसार में निर्वाण खोजना क्या इतना आसान है ?



शनिवार, 11 जून 2011

आज का यथार्थ .........

सुबह-सवेरे
मॉर्निंग वाक् के
बाद !
जब हम घर
लौटेंगे तब
गर्म चाय के
प्याले में,
दूध और शक्कर के
साथ.
क्यों न हम
उसमे घोले
दो चम्मच
प्यार की मस्ती !
और भूल जाए
उन मस्तीभरी
चुस्कियों में,
भूत-भविष्य !
शुद्ध वर्तमान में
जो भी है
जैसा भी है
स्वीकार कर ले
आज का यथार्थ !


शुक्रवार, 3 जून 2011

अहिंसा:परमो धर्म!


सुंदर विचार तभी सार्थक है
जब उसमे सत्य की झलक हो !
सत्य तभी सार्थक है जब
उसमे सौंदर्य की झलक  हो !
सत्य और सौंदर्य एक दुसरे के
पूरक है !
कभी किसीकी कविता की
चार पंक्तियाँ भी ह्रदय को छू जाती है ! 

कभी किसीके गीतों के सुंदर बोल भी अधर
गुनगुनाने को अधीर हो उठते है !
कभी-कभी तो कितने भी सुंदर,सत्य विचार क्यों न हो
हमारे समझ से परे लगते है ! 

समझ में ही नहीं आता कि रचनाकार
अपनी रचना द्वारा क्या समझाना चाहता है !
ऐसे में ......
बौखलाकर-तिलमिलाकर कुछ भी
टिका-टिप्पणी करने से पहले
एक मिनिट धैर्य से उस रचना को
बार-बार पढ़िए ! 

फिर भी बात समझ में नहीं आये तो,
सरल -सा मधु-मक्खी का गुरुमंत्र अपनाइए  

जैसे ....
एक मधु-मक्खी मधुर रस की
चाह लिए, 

फूल पर मंडराकर उसके गंध को,सौंदर्य को
बिना इजा पहुंचाए,शांति का पाठ पढाकर गूजर जाती है
ऐसे ही आप गूजर जाइये
"अहिंसा:परमो धर्म" का गुरुमंत्र अपनाइये !
नोट : इस गुरुमंत्र का उपयोग
हम अपने जीवन शैली में भी
इस्तमाल कर सकते है !
क्योंकि कौन नहीं चाहता है शांति ?
किन्तु शांति के लिए शब्दों की
तलवारे चलाना क्या ये जरुरी है ?